हम प्यार की राह पर चलते वक़्त अक्सर ये भूल जाते हैं की ज़िन्दगी में और बहुत मसले हैं , जो प्यार से ज्यादा बेहद संचिदा और जरूरी हैं !
ये कहानी है एक ऐसे मुसाफिर की ..... जो घर से दूर बहूत दूर निकल आया था , बस प्यार पाने की चाहत में अपने सगे सम्बन्धी , माँ - बाप , भाई - बहन .... सबको गम भरी यादें दे आया था !
ये तक भूल गया नामुराद की ज़िन्दगी में जिस माँ ने जनम दिया ... जिसने नो महीने पेट में रखा , पाला पोसा ... वो कितना रोएगी ... किस तरह तिल तिल मर मर के जीएगी...
खैर मैं समय बर्बाद न करते हुए आप लोगो को संरचना जो की सत्य से जुडी है उस दिशा की और ले चलता हु .....
मेरी रूह कांप जाती है लिखते हुए भी ... पर हकीकत से पडदा हटाना जरूरी है, दुनिया को समझाना जरूरी है .... ये कहानी किस व्यक्ति पर है.... ये मैं अंत में जरूर बताऊंगा ..... फिलहाल लड़के के नाम की जगह मैं मृतुन्जय नाम और लड़की के नाम की जगह सोनिया नाम का सहारा लेते हुए पूरी कहानी लिख रहा हु
पार्ट १ आरम्भ ;-
बात उन दिनों की है जब मृतुन्जय नोवी कक्षा में पड़ता था ... उसको स्कूल में ही एक लड़की से प्यार हो गया .. वो लड़की भी उसकी चाहत में थी या नहीं थी इस बात से अनजान होने के बावजूद मृतुन्जय उस लड़की पर जान छिड़कने लगा था ....
उस लड़की के पिता बैंक में काम करते थे , उनकी पोस्टिंग आ गयी ... और लड़की ने स्कूल में क्लासरूम में सबसे बताना भी शुरू कर दिया की ७ दिन के अन्दर वो मुंबई जा रही है ... इस बात से मृतुन्जय परेशान सा हो गया ...
मानो मृतुन्जय की तो रातो की नींद ही उद्द गयी ... उसको दर सा सताने लगा की अगर ७ दिन में सोनिया चली जाएगी तो वो कैसे जी पायेगा .. अभी तो महोबत का इज़हार तक नहीं किया और सोनिया जाने वाली है .. मृतुन्जय तंग हो रहा था ... न उसको खाना खाने का मन करता था , न ही घर से कहीं जाने का ... उसके घरवाले परेशान थे , की मृतुन्जय को क्या हो गया है... कोई कुछ समझ नहीं प् रहा था .... उसके अन्दर जो प्यार पनपा हुआ था ... उसने उस प्यार का जिक्र कभी किसी से किया ही नहीं था ... और अचानक ही खाना पानी बंद कर देने से मृतुन्जय के माँ बाप तंग थे ...
वक़्त kahan रुकता है ,,,,, ७ दिन निकल गए और वक़्त आ ही गया की सोनिया को मुंबई जाना था ... पिताजी की पोस्टिंग जो आई हुई थी .... छठा दिन था सोनिया के घर में packing चल रही थी ,,, उनकी सुबह की रेलगाड़ी थी ...
न जाने क्यों सोनिया भी बेचैन सी थी ... सोनिया महसूस कर रही थी की वो कोई ख़ास चीज़ बहोत ख़ास चीज़ छोड़े जा रही है, पर समझ नहीं प् रही थी की वो चीज़ आखिर है क्या .....
कई बार सोनिया ने सोचा तो ख्याल आया की मृतुन्जय उसको बहोत दिन से कुछ कहना चाहता है ... कहीं प्यार का जिक्र तो नहीं ... ! सोनिया को समझ नहीं आ रहा था की आखिर क्यों ये सवाल मन में घूम रहा है ...
खेर सोनिया सोच ही रही थी की सोनिया की ममी ने सोनिया को आवाज़ लगाईं की बेटा सोनिया आपने सब किताबे संभाली या कुछ बच गया है ...
सोनिया ने कहा ... सब संभाल ली है मम्मी
उधर मृतुन्जय तो जैसे मानो पागल ही होने को था , उसको पता था की कल से सोनिया स्कूल नहीं आएगी ,
सोच रहा थी की एड्रेस तक नहीं ले पाया मुंबई का ... कैसे ढून्दुन्गा इस भीड़ भरी दुनिया में ... अगर कहीं मुंबई से भी कहीं और चली गयी तो तो बहोत मुश्किल हो जाएगा सोनिया को धुंद पाना ... कोई फोटो तक नहीं.. मृतुन्जय बस दिल ही दिल आंसू बहता ही जा रहा था , पत्थर का बुत सा बन गया था !
जैसे तैसे मृतुन्जय ने खुदको संभाला और रात रात में या सुभ जल्दी सोनिया से मिलना जरूर है .. अपने दिल में ठान लिया ! पर बेचैनी में पूरी रात बिना पलके तक झपकाए आंसू बहता रहा और जागता रहा !
सुभ क पांच बजे ही वो नहा कर तयार हो गया ... और सोनिया के घर का पता लगा कर उसके घर जाने लगा
न कोई साइकल न जेब में पैसे ..... जनाब पागलो की तरह सडको पर भाग रहा था ... घर से ११ किलोमीटर दूर रहती थी सोनिया जो की उसने भागते हुए तय किए
इतना भागने पर भी मृतुन्जय को प्यास तक नहीं लगी थी, क्योकि दिल के दर्द के आगे इंसान सब कुछ भूल जाया करता है !!
आगे भाग २ में लिखूंगा कल दोस्तों
ये कहानी है एक ऐसे मुसाफिर की ..... जो घर से दूर बहूत दूर निकल आया था , बस प्यार पाने की चाहत में अपने सगे सम्बन्धी , माँ - बाप , भाई - बहन .... सबको गम भरी यादें दे आया था !
ये तक भूल गया नामुराद की ज़िन्दगी में जिस माँ ने जनम दिया ... जिसने नो महीने पेट में रखा , पाला पोसा ... वो कितना रोएगी ... किस तरह तिल तिल मर मर के जीएगी...
खैर मैं समय बर्बाद न करते हुए आप लोगो को संरचना जो की सत्य से जुडी है उस दिशा की और ले चलता हु .....
मेरी रूह कांप जाती है लिखते हुए भी ... पर हकीकत से पडदा हटाना जरूरी है, दुनिया को समझाना जरूरी है .... ये कहानी किस व्यक्ति पर है.... ये मैं अंत में जरूर बताऊंगा ..... फिलहाल लड़के के नाम की जगह मैं मृतुन्जय नाम और लड़की के नाम की जगह सोनिया नाम का सहारा लेते हुए पूरी कहानी लिख रहा हु
पार्ट १ आरम्भ ;-
बात उन दिनों की है जब मृतुन्जय नोवी कक्षा में पड़ता था ... उसको स्कूल में ही एक लड़की से प्यार हो गया .. वो लड़की भी उसकी चाहत में थी या नहीं थी इस बात से अनजान होने के बावजूद मृतुन्जय उस लड़की पर जान छिड़कने लगा था ....
उस लड़की के पिता बैंक में काम करते थे , उनकी पोस्टिंग आ गयी ... और लड़की ने स्कूल में क्लासरूम में सबसे बताना भी शुरू कर दिया की ७ दिन के अन्दर वो मुंबई जा रही है ... इस बात से मृतुन्जय परेशान सा हो गया ...
मानो मृतुन्जय की तो रातो की नींद ही उद्द गयी ... उसको दर सा सताने लगा की अगर ७ दिन में सोनिया चली जाएगी तो वो कैसे जी पायेगा .. अभी तो महोबत का इज़हार तक नहीं किया और सोनिया जाने वाली है .. मृतुन्जय तंग हो रहा था ... न उसको खाना खाने का मन करता था , न ही घर से कहीं जाने का ... उसके घरवाले परेशान थे , की मृतुन्जय को क्या हो गया है... कोई कुछ समझ नहीं प् रहा था .... उसके अन्दर जो प्यार पनपा हुआ था ... उसने उस प्यार का जिक्र कभी किसी से किया ही नहीं था ... और अचानक ही खाना पानी बंद कर देने से मृतुन्जय के माँ बाप तंग थे ...
वक़्त kahan रुकता है ,,,,, ७ दिन निकल गए और वक़्त आ ही गया की सोनिया को मुंबई जाना था ... पिताजी की पोस्टिंग जो आई हुई थी .... छठा दिन था सोनिया के घर में packing चल रही थी ,,, उनकी सुबह की रेलगाड़ी थी ...
न जाने क्यों सोनिया भी बेचैन सी थी ... सोनिया महसूस कर रही थी की वो कोई ख़ास चीज़ बहोत ख़ास चीज़ छोड़े जा रही है, पर समझ नहीं प् रही थी की वो चीज़ आखिर है क्या .....
कई बार सोनिया ने सोचा तो ख्याल आया की मृतुन्जय उसको बहोत दिन से कुछ कहना चाहता है ... कहीं प्यार का जिक्र तो नहीं ... ! सोनिया को समझ नहीं आ रहा था की आखिर क्यों ये सवाल मन में घूम रहा है ...
खेर सोनिया सोच ही रही थी की सोनिया की ममी ने सोनिया को आवाज़ लगाईं की बेटा सोनिया आपने सब किताबे संभाली या कुछ बच गया है ...
सोनिया ने कहा ... सब संभाल ली है मम्मी
उधर मृतुन्जय तो जैसे मानो पागल ही होने को था , उसको पता था की कल से सोनिया स्कूल नहीं आएगी ,
सोच रहा थी की एड्रेस तक नहीं ले पाया मुंबई का ... कैसे ढून्दुन्गा इस भीड़ भरी दुनिया में ... अगर कहीं मुंबई से भी कहीं और चली गयी तो तो बहोत मुश्किल हो जाएगा सोनिया को धुंद पाना ... कोई फोटो तक नहीं.. मृतुन्जय बस दिल ही दिल आंसू बहता ही जा रहा था , पत्थर का बुत सा बन गया था !
जैसे तैसे मृतुन्जय ने खुदको संभाला और रात रात में या सुभ जल्दी सोनिया से मिलना जरूर है .. अपने दिल में ठान लिया ! पर बेचैनी में पूरी रात बिना पलके तक झपकाए आंसू बहता रहा और जागता रहा !
सुभ क पांच बजे ही वो नहा कर तयार हो गया ... और सोनिया के घर का पता लगा कर उसके घर जाने लगा
न कोई साइकल न जेब में पैसे ..... जनाब पागलो की तरह सडको पर भाग रहा था ... घर से ११ किलोमीटर दूर रहती थी सोनिया जो की उसने भागते हुए तय किए
इतना भागने पर भी मृतुन्जय को प्यास तक नहीं लगी थी, क्योकि दिल के दर्द के आगे इंसान सब कुछ भूल जाया करता है !!
आगे भाग २ में लिखूंगा कल दोस्तों